FPO से प्रमाणित पारले ग्लूकोज बिस्किट करीब 100 Gr. वजन का सात-सात विपणन बिचोलियों को बीच में कमीशन देने के बाद अंतिम उपभोक्ता को 5/- में मिलता हे, वही RCM अपना लोकल क्वालिटी का मिल्क मैजिक बिस्किट निर्माण कंपनी से सीधे उपभोक्ता को देने के बावजूद 60 Gr. के 5/- रुपये वसूलती थी, इस तरह के सेकड़ो उदाहरण भरे पड़े हे. अंत स्पष्ट हे कि RCM लोगो को लोटरी और चैन सिस्टम का लालच दे कर अपना घटिया माल भी महंगे दामो पर बेच रही थी. 500/- रुपये ज्यादा ले कर कंपनी उसके अपने यहाँ बनाये गए खाते में करीब 40/- रुपये वापस डालती थी जो कि 500/- रुपये योग होने पर ही उसके बेंक खाते में ट्रांसफर किये जाते थे अंत स्पष्ट हे कि 12 माह तक के कुल 6000/- रुपये ज्यादा ले करके उसे 500/- रुपये ही वापस मिलते. यदि कोई बेचारा बीच में किसी वजह से खरीददारी करना छोड़ देता तो उसका कमीशन कंपनी में ही पड़ा रहता. अभी जाँच करताओ के खुलासे में मालूम चला हे कि इस तरह के 64,00,000 चौसठ लाख लोगों का कंपनी करोडो रूपए कमीशन लम्बे समय से दबा कर बैठी थी यानि कि कंपनी के साथ आय की आस में जुड़े कुल लोगो में से आधो (50%) को हकीकत में एक पैसे का भी कमीशन का भुगतान नहीं मिला था जबकि उनका कमीशन 500/- से कम का बन चुका था, 30% लोग-सदस्यों ने किसी रिश्तेदार, मित्र, अधिकारी के प्रेशर की वजह से जोइनिग तो ले ली लेकिन वे कभी ऐसा घटिया सामान खरीदने PUC आये ही नहीं अंत उनका कोई कमीशन बना ही नहीं, 10% वे सदस्य थे जिनके 500/- से अधिक का कमीशन तो बन गया था लेकिन कंपनी में हो रही कई तरह की शर्तो की चालबाजियों के कारण उन्हें मिल ही नहीं सका, 5% सदस्यों का कमीशन आईडी टर्मिनेट करके, ब्लोक करके रोका हुआ था, अब बाकी बचे 5% सदस्यों को ही वास्तव में कंपनी कमीशन का भुगतान कर रही थी उनमे से भी सिर्फ 1% सदस्यों को ही अच्छे पैसे मिल रहे थे.
संषेप में यदि कहा जाए तो टी सी एंड फेमेली (95%) मलाई व् क्रीम खा रही थी, पिन अचीवर (1%) दूध पी रहे थे, सक्रीय डिस्ट्रीब्यूटर (4%) खुरचन खा रहे थे. यही RCM की असली हकीकत थी.
देखिये आपकी बातों में काफी सच्चाई हैं लेकिन मेरे हिसाब से तो कंपनी करीब १००० की खीरदारी पर केवल ७०० का समांन ही देती थी करीब २०० रूपए लीडरों में बाँट दिए जाते थे और १०० रुपए कंपनी अकाउंट में चले जाते थे
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