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Friday 30 March 2012

RCM द्वारा गेर कानूनी कार्यों से सरकार व आम नागरिकों के साथ ठगी

हमारे इस मंच पर बने एक मित्र श्रीमान विकास गुप्ता जी ने एक बात लाख टके की कही हे की यह टी. सी. जी अब इस RCM BUSINESS को आगे चलाना ही नहीं चाहता था. 

आपकी यह बात 101% सही हे. ज्यादा नहीं सिर्फ तीन साल पीछे जा कर इनके द्वारा रोज-रोज की जा रही नित-नयी हरकतों पर गहराई से यदि नजर डाली जाये तो यह शक और भी पुख्ता होता हे. इन तीन सालों में इन्होने अपना पूरा ध्यान इस बात पर लगा दिया कि कैसे अति कम समय में अरबों-खरबों रुपये इक्कठे किये जाये, इसके लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए गए, सभी उत्पादों की क्वालिटी जो कि पहले से ही घटिया थी उससे ज्यादा लाभ निकालने के लिये और निम्नतर स्तर का किया गया इन्हें सामान नहीं बिकने का डर
तो था नहीं क्यों कि लोटरी का लालच जो साथ जुड़ा था, और दो-दो जोइनिंग लाना हर लीडर की मज़बूरी थी, भलेही उन्हें अपनी जेब से 500/- -500/- रुपये देने पड़ते थे असली जोइनिंग लाने वाले को और उपभोक्ता कानून के नियम से इन्हें भय था नहीं क्योकि शिकायत करने वाले को इन्होने उसकी आईडी ही टर्मिनेट कराने का डर जो दिखा रखा था, अब "बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधने जाएगा" वही जो मौत को गले लगाना चाहता हो, अरे भई! अब यहाँ अखाड़े में पहलवान बन कर बड़ी-बड़ी ताल ठोकने वाले हम भी नहीं गये थे घंटी बांधने, उस बिल्ली मौसी की गुर्राहट भी उस समय हमें शेर की दहाड़ जैसी लगती थी.

आश्चर्य की बात तो यह थी की ये पूरे देश में धड़ल्ले से गेर क़ानूनी उत्पाद और कार्य भी सभी राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार की नाक के ठीक नीचे बेच रहा, कर रहा था, कैसे बेच रहे थे, कर रहे थे इसकी SOG से नहीं CID से जाँच होनी चाहिए क्योकि बिना भ्रष्टाचार के ये इस देश में संभव ही नहीं हे. भ्रष्टाचार के विरुद्ध पूरे देश में अलख जगाने वाले श्री अन्ना जी से समर्थन मांगने जंतर-मंतर पर जाने से पहले ये जाने वाले चुल्लू भर पानी में डूब कर मर क्यों नहीं गये? क्योकि एक न एक दिन इनके इस कार्य के कारण लोग, राजनेता उस महापुरुष श्री अन्ना जी पर भी इन भ्रष्टाचारियों को दिए गये समर्थन रूपी इस दाग पर अंगुली उठा सकते हे. 

इनके द्वारा किये जा रहे इस तरह के कुछ गेर क़ानूनी सामानों और कार्यों की बानगी तो नीचे देखिये :-

* बिना ISI मार्के का बिजली का किसी भी तरह का सामान बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (जैसे की पंखे, पावर सेवर, आर ओ, इनवर्टर, बेटरी, मिक्सी आदि)

* पैक्ड या डिब्बाबंद कोई भी खाद्य पदार्थ सामान बिना एगमार्क और FPO लाइसेंस के बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (इसमें इनके सामानों की इतनी लम्बी लिस्ट हे की कई पेज भर जायेंगे)

* कास्मेटिक्स सामान जिनमे हानिकारक केमिकल की मात्रा होती हे वे बिना किसी सरकार द्वारा प्रमाणित प्रयोगशाला से प्रमाण पत्र लिये बिना बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (इसमें हजारो तरह के उत्पाद आते हे.)

* बिना लाइसेंस के कीटनाशक और उर्वरक खाद उत्पाद बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (कंपनी, PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का एसा सामान वार्षिक बेच रहे थे.)

* बिना लाइसेंस लिये मेडिसिन उत्पाद बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (कंपनी, PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का एसा सामान वार्षिक बेच रहे थे.)

* बिना TIN नंबर की PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का सामान वार्षिक बेच रहे थे को सामान सप्लाई करना और उनके द्वारा भण्डारण करना व् वापस आगे बेचना गेर क़ानूनी हे. (वापस विक्रय पर देय टेक्स जमा नहीं कराना कालाधन बनाने जैसा हे)

* बिना फ़ूड लाइसेंस वाली PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का सामान वार्षिक बेच रहे थे को सामान सप्लाई करना और उनके द्वारा भण्डारण करना व् वापस आगे बेचना गेर क़ानूनी हे.

* बिना कंपनी की रसीद दिए 150/- में बेंक में खाता खोलने के करोडो फॉर्म बेचना और वो रुपये उपभोक्ता के बेंक एकाउंट बेलेंस में नहीं देना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)

* हर माह कंपनी द्वारा रखी गयी मीटिंगों में लाखों की तादात में टिकट बेच कर प्राप्त कलेक्शन पर सर्विस टेक्स नहीं चुकाना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)

* PUC या DISTRIBUTOR से प्राप्त एडवांस या सिक्योरिटी राशि जिसे लम्बे समय तक कंपनी अपने पास रखती हे और उस राशी पर खुद ब्याज प्राप्त करती हे तो उस पर प्रचलित कम से कम दर पर भी ब्याज नहीं देना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)

* आम लोगो को विदेशी सामान का बहिष्कार करने का कह कर खुद विदेशी सामान यहाँ बेचना गेर कानूनी हे.

* बिना अपनी कंपनी का IRDA से रजिस्ट्रेशन कराये अपनी कंपनी के दस्तावेजो से बीमा प्रस्ताव नागरिकों से करना व् बेचना गेर कानूनी हे.

* किसी भी सामान्य या कोरपोरेट बीमा एजेंट या IRDA से प्रमाणित बीमा कंपनी के द्वारा बीमा उत्पाद के प्रस्ताव को किसी भी तरह का लालच दे कर, जैसे लोटरी-कमीशन आदि का बेचना गेर कानूनी हे.

* कम से कम कोई निश्चित राशि का सामान प्रति माह खरीदने और उसमे पोइन्तो पर कमीशन व् लोटरी देने की शर्त, लालच के साथ बिना IRDA से लाइसेंस ले कर खुद अपने स्तर पर दुर्घटना बीमा करना या करवाना गेर कानूनी हे.

* किसी कोर्पोरेट IRDA से प्रमाणित बीमा कंपनी एजेंट से अपने सदस्यों के लिए ग्रुप बीमा ले कर सदस्यों को हर माह निश्चित कम से कम राशि का सामान खरीदने पर ही उसका लाभ देना लालच देने जैसा ही हे जो कि गैर क़ानूनी हे.

* सदस्य को विक्रय किये जा रहे सामान के बिल में कितनी राशी दुर्घटना बीमा के मद में काटी जा रही हे स्पष्ट नहीं बताना गैर क़ानूनी हे.

* 5 लाख वार्षिक से कम सामान बेचने वाली PUC या DISTRIBUTOR द्वारा VAT कमपोंस्टेशन प्रमाण पत्र SALE TAX डिपार्टमेंट से लिए बिना सामान बेचना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)

*  Distrbutaro द्वारा अपने स्वय के घरेलू उपयोग के अलावा कोई भी सामान बिना स्थानीय पंचायत, नगरपालिका, निगम में पंजीयन कराये एव आवश्यक प्रमाणपत्र लिए बेचने का कार्य करना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)

कंपनी के कर्ताधार्ताओ ने अपनी मक्कारी का परिचय देते हुए की कोई उसकी लूट से बच न जाये, कंपनी ने इसका एक विचित्र आविष्कारिक हल निकाला कि सदस्य कंपनी के बेंक खाते में 3000/- रुपये प्रति "लोयलटी बोनस" आई डी के हिसाब से (जिसे बाद में 2500 - 2700 तक कर दिया गया) जमा करा दे और जमा पर्ची को डिस्ट्रीब्यूटर नंबर, नाम के साथ कंपनी को फैक्स कर दे, और उसके अपलाइन बड़े लीडर से फोन पर वेरीफाई करा दे  तो कंपनी उस डिस्ट्रीब्यूटर के खाते में सीधे ही मांगी गयी "लोयलटी बोनस" आई डी जमा कर देगी (5000 बी वी से एक "लोयलटी बोनस" आई डी बनती थी व् उसके लिए करीब 8000/- का सामान खरीदना होता था) , यानि किसी तरह का सामान खरीदने की जरुरत ही नहीं। यह कार्य सीधे-सीधे चिटफंड इन्वेस्टमेंट के तहत आता हे लेकिन कंपनी के कर्ताधर्ताओ को इसकी परवाह ही नहीं थी क्योकि उनको यह विश्वास था की जब लम्बे समय से वे इस तरह के कई गोरखधन्धे खेल चुके हे और अब तक उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई हे तो यह बड़ा खेल भी बड़ी आसानी से खेल लेंगे। इस सम्बन्ध में देखे : http://rcmmanch.blogspot.in/2012/04/rcm-mlm.html

* (आगे जारी हे...... देखते रहिये) 
http://rcmmanch.blogspot.in/2012/03/rcm_5440.html
 

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