इस देशी-विदेशी के मुद्दे पर हमें पहले कुछ सामान्य जानकारी, बाते समझनी होगी.
* आज व्यापारिक और ज्ञान के तौर पर दुनिया के सभी देश एक प्लेटफोर्म पर आ गए हे.
* आप दुसरे देशो को सिर्फ निर्यात ही करेंगे उनसे वापस कुछ भी आयात नहीं करेंगे यह अर्थशास्त्र के
प्राकतिक नियमो, धन के प्रवाह के विरुद्ध हे, और दुनियाँ में एसा कोई एक देश भी नहीं होगा जो आपसे इस तरह के एकतरफा व्यापार की उम्मीद रखेगा कि आप तो उसे अपने यहाँ का सामान, सर्विस बेचते रहे उस बेचारे देश से वापस कुछ भी नहीं ख़रीदे.
* ये जिन कंपनियों के नाम गिनाते नहीं थकते थे वे असल में हमारे देश में फेक्ट्री लगा कर हमारे कानून के अनुसार चलती हे न कि उनके अपने देश के कानून के अनुसार और उन्हें हमारे नियम-अधिनियमों के अनुसार जरुरी सभी पंजीयन, लाइसेंस लेने होते हे, यहाँ रोजगार देना होता हे व् अधिकांश उनकी आय का हिस्सा इस देश में ही नियोग करना होता हे अन्यथा उन पर कार्यवाही होती हे और दंड दिया जाता हे.
* किसी देश की विशेष भोगोलिक स्थति, प्राक्रतिक संसाधनों कि उपलब्धता, ज्ञान-अविष्कार आदि का वितरण उस देश में ही सिमित नहीं रह कर यदि सम्पूर्ण दुनिया में होता हे तो इससे दुनिया के हर नागरिक का भला ही होता हे उसका जीवन स्तर उंचा उठता हे और उसे प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पाद उच्च क्वालिटी के वाजिब दर पर मिलते हे. अगर आपको जमाने के साथ चलना हे तो जो अब आवश्यक हो गयी चीज जिसे आप अभी वर्तमान में बना नहीं सकते या उसकी टेक्नोलोजी कोपीराइट संपदा के तौर पर किसी विदेश में रजिस्टर्ड हे तो आपको उसे विदेश से आयात करना ही होगा नहीं तो आप तेजी से विकसित होती दुनियाँ में पिछड़ जायेंगे.
इस सन्दर्भ में एक छोटा सा उदाहरण यहाँ देना चाहूँगा कि श्री राजीव गाँधी अति दूरदर्शी प्रधानमंत्री थे और वे विदेश से इस देश में कम्पूटर क्रांति लाना चाहते थे. उनके इस प्रस्ताव का कई राजनेतिक दलों, बेंक कर्मचारियों ने घोर विरोध किया, इससे करोड़ों लोग बेरोजगार हो जायेंगे, विदेशियों का यहाँ राज हो जाएगा और न जाने क्या-क्या बाते कही गयी. लेकिन वे धुन के पक्के थे अंत इसे यहाँ लाये, और आज कम्पुटर की क्या उपयोगिता हमारे जीवन में हे बच्चा-बच्चा जानता हे, और यही बात अब मोबाईल के सन्दर्भ में भी कही जा सकती हे.
* अब जो लोग, कंपनियाँ इस प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाती, उत्पादों को स्टेंडर्ड के अनुसार बना नहीं पाती, उपभोक्ताओं को स्तरीय सेवाए दे नहीं पाती वे अपने घटिया उत्पादों को भी महंगे दामो में बेचने के लिए संकीर्ण मानसिकता वाले जन का उपयोग करती हे, उनकी भावनाओ को देश प्रेम का हवाला दे कर गुमराह करती हे, अपने लाभ के लिए षड्यंत्र कर के आन्दोलन करवाती हे, खुद पीछे रह कर लोगो को मरवाती हे, धर्म का सहारा अपने लाभ के लिए लेती हे. खुद गुड़ खाती हे और लोगो को गुलगुलों से परहेज करने का कहती हे, खुद अपने घर में ब्रांडेड सामान, विदेशी सामान लाती हे लोगो को अपना घटिया सामान MLM के जाल में फाँस कर बेचती, ठगती हे.
* दोस्तों, MLM सिस्टम गलत नहीं हे लेकिन इन कुछ भारतीय कंपनियों ने अपने खुद को और खुद के परिवार को असीम लाभ हो जाए इसके लिए प्लान को गलत तरीके से बना रखा हे, प्लान पर किसी नियम-अधिनियम का कानूनी कंट्रोल नहीं हे, और खुद अति लाभ पाने की चाह में आम जन को बेतुकी शर्तो में बांध कर हर तरह से ठग, लुट रही हे. बात-बात में अमेरिका में 70% MLM सिस्टम से सामानों का विक्रय होता हे का उदाहरण देते नहीं थकने वाली RCM अपने एक प्रतिशत उत्पाद को भी वहां के उपभोक्ताओं के लिए तय किये गए स्टेंडर्ड, मानदंडो के अनुरूप पास करा के बताये तो जानू.
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