
हमारे पास कई-कई  सबूत हें जो यह साबित करते हें कि RCM में
 हर तरह से हर स्तर पर ठगी कर के पैसा बनाने का कार्य उपरी लेवल यानि टी. सी.
 जी. के द्वारा किया जा रहा था और बाकी सब तो उनके हाथों की  कठपुतली थे. बात
 ये नहीं हें कि वो ठग रहे थे, भोले लोगो को ठगने का कार्य तो हर देश में सदियों
 से होता आया हें, बात यह हें कि वे अपने आप को अपने प्रवचनों व् किताबों आदि से एक निस्वार्थ संत के तौर पर
 स्थापित कर के भावनात्मक तरीके से लोगो के साथ इस ठगी को अंजाम दे रहे थे जिससे आम लोगो का अब असली 
साधु-संतो की भावनाओं पर से ही विश्वास उठ जायेगा, लोगो में परोपकार की भावना ही नहीं रहेगी जो की इस भारत देश की मुख्य पहचान हे.
 
एक पुरानी कहानी हें कि 
एक बार जंगल में एक मुसाफिर अपने कीमती सामान और घोड़े पर सफ़र कर रहा था. 
रास्ते में एक खून से लथपथ व्यक्ति सड़क पर पड़ा कराह रहा था,
यह देख वह भोला परोपकारी मुसाफिर 
दया वश अपने घोड़े से नीचे उतरा, खुद प्यासा रह जाएगा यह चिंता छोड़ कर उसे पानी पिलाया, खुद भूखा रह कर अपने 
हिस्से का खाना खिलाया और उसे अपने घोड़े पर बैठा कर खुद काँटों भरी राह में
 पैदल चलने लगा.
तभी अट्टहास करता हुआ वह ठग उसके घोड़े को
 एडी लगा कर उसके कीमती सामान सहित भाग गया, तब पीड़ित मुसाफिर ने उसे कहा 
अरे नीच तुझे और भी धन चाहिए तो मेरे घर आ कर ले जाना धन किसी के साथ स्वर्ग नहीं जाता लेकिन आइन्दा किसी और
 को इस तरह के बहरूपिया वेश से मत ठगना नहीं तो लोगो का हकीकत में दुर्घटना
 ग्रस्त हुए मरणासन्न व्यक्ति पर विश्वास नहीं रहेगा. वे उसपे दया नहीं 
दिखायेंगे, लोगो में परोपकार की भावना ही खत्म हो जायेगी.
ठीक
 ईसी तरह यह भेड़िया भेड़ की खाल ओढ़ कर दुनियाँ को ठग रहा था ताकि किसी को
 शक न हो और लोग कहे कि ये तो बेचारी भेड़ हें ये एसा कैसे कर सकती हें. 
बात-बात में ईश्वर को आगे लाने वाला स्वय इश्वर की आँखों में धुल झोंक रहा 
था. रंगे सियार का तो एक न एक दिन रंग उतरना ही था, लेकिन अफ़सोस हें कि उनके कई अंधभक्तो पर से अभी तक उसका चढ़ाया हुआ रंग नहीं उतरा हें?
 
 
 
RCM के मालिक द्वारा आम जनता को संत का मुखोटा लगा कर भावनात्मक ठगा गया
ReplyDeleteहमारे पास कई-कई सबूत हें जो यह साबित करते हें कि RCM में हर तरह से हर स्तर पर ठगी कर के पैसा बनाने का कार्य उपरी लेवल यानि टी. सी. जी. के द्वारा किया जा रहा था और बाकी सब तो उनके हाथों की कठपुतली थे. बात ये नहीं हें कि वो ठग रहे थे, भोले लोगो को ठगने का कार्य तो हर देश में सदियों से होता आया हें, बात यह हें कि वे अपने आप को अपने प्रवचनों व् किताबों आदि से एक निस्वार्थ संत के तौर पर स्थापित कर के भावनात्मक तरीके से लोगो के साथ इस ठगी को अंजाम दे रहे थे जिससे आम लोगो का अब असली साधु-संतो की भावनाओं पर से ही विश्वास उठ जायेगा, लोगो में परोपकार की भावना ही नहीं रहेगी जो की इस भारत देश की मुख्य पहचान हे.
एक पुरानी कहानी हें कि एक बार जंगल में एक मुसाफिर अपने कीमती सामान और घोड़े पर सफ़र कर रहा था. रास्ते में एक खून से लथपथ व्यक्ति सड़क पर पड़ा कराह रहा था,
यह देख वह भोला परोपकारी मुसाफिर दया वश अपने घोड़े से नीचे उतरा, खुद प्यासा रह जाएगा यह चिंता छोड़ कर उसे पानी पिलाया, खुद भूखा रह कर अपने हिस्से का खाना खिलाया और उसे अपने घोड़े पर बैठा कर खुद काँटों भरी राह में पैदल चलने लगा.
तभी अट्टहास करता हुआ वह ठग उसके घोड़े को एडी लगा कर उसके कीमती सामान सहित भाग गया, तब पीड़ित मुसाफिर ने उसे कहा अरे नीच तुझे और भी धन चाहिए तो मेरे घर आ कर ले जाना धन किसी के साथ स्वर्ग नहीं जाता लेकिन आइन्दा किसी और को इस तरह के बहरूपिया वेश से मत ठगना नहीं तो लोगो का हकीकत में दुर्घटना ग्रस्त हुए मरणासन्न व्यक्ति पर विश्वास नहीं रहेगा. वे उसपे दया नहीं दिखायेंगे, लोगो में परोपकार की भावना ही खत्म हो जायेगी.
ठीक ईसी तरह यह भेड़िया भेड़ की खाल ओढ़ कर दुनियाँ को ठग रहा था ताकि किसी को शक न हो और लोग कहे कि ये तो बेचारी भेड़ हें ये एसा कैसे कर सकती हें. बात-बात में ईश्वर को आगे लाने वाला स्वय इश्वर की आँखों में धुल झोंक रहा था. रंगे सियार का तो एक न एक दिन रंग उतरना ही था, लेकिन अफ़सोस हें कि उनके कई अंधभक्तो पर से अभी तक उसका चढ़ाया हुआ रंग नहीं उतरा हें?