यह देख वह भोला परोपकारी मुसाफिर दया वश अपने घोड़े से नीचे उतरा, खुद प्यासा रह जाएगा यह चिंता छोड़ कर उसे पानी पिलाया, खुद भूखा रह कर अपने हिस्से का खाना खिलाया और उसे अपने घोड़े पर बैठा कर खुद काँटों भरी राह में पैदल चलने लगा.
यह एक निष्पक्ष आरसीएम मंच ब्लॉग हे जहाँ RCM से लाभार्थी और पीड़ित दोनो ही पक्ष अपनी बात खुल के बोल सकते हें और एक दूसरे की टिप्पणियों का माकूल जवाब दे सकते हें. इस ब्लॉग की ज़रूरत इसलिये पड़ी क्योकि वर्तमान में नेट पर उपलब्ध अन्य सभी ब्लॉग एक साजिश के तहत RCM के पक्ष की ही बात को अपने ब्लॉग पर रख रहें हें, इनमें से कई अवसरवादियों ने तो हमारी मजबूरी से कमाई करने का ज़रिया लुभावने गूगल एडसेंस, विजापनों आदि को अपने ब्लॉग, साइट पर दे कर बना लिया हे और हमारे हर क्लिक पर वे 25/- से 100/- रूपए कमा रहें हें, अन्तह वे निष्पक्ष नहीं हे, जिससे आख़िर RCM का सच, हक़ीकत क्या हे आम जनता या डिसट्रिब्युटर नहीं जान पा रहा हे, इसी सच को सामने लाने का हमारा यह छोटा सा प्रयास हे, आप RCM से मिले अपने सच्चे अनुभव, जानकारी को पूरे देश को सारगर्भित भाषा में बताएँगे. ध्यान रहे कि इस प्लेटफोर्म पर आपके कमेन्ट बे-बुनियाद न हो और अपने कमेन्ट के लिए आप स्वंय जिम्मेवार होंगे, इस ब्लॉग का आर सी एम् कंपनी, मालिको, लीडरों आदि से कोई संबध नहीं हे. धन्यवाद.
यदि आप RCM में अपने स्वयं के साथ घटित कोई घटना, खबर, सबूत इस ब्लॉग में पोस्ट के तौर पर देना चाहते हो या हमें उसकी जानकारी देना चाहते हो तो उसे ई-मेल पता: rcmmanch@gmail.com पर अपना व शहर का नाम + पिनकोड, मोबाईल नंबर के साथ भेजे जिसे यथासंभव इस ब्लॉग पर यदि आप चाहेंगे तो केवल आपके नाम के साथ पोस्ट के तौर पर स्थान दिया जा सकेगा. आपका नाम, ई-मेल आई डी व मोबाईल नंबर वेलिड व वेरिफाइड होनी चाहिए.
Friday, 30 March 2012
RCM के मालिक द्वारा आम जनता को संत का मुखोटा लगा कर भावनात्मक ठगा गया
यह देख वह भोला परोपकारी मुसाफिर दया वश अपने घोड़े से नीचे उतरा, खुद प्यासा रह जाएगा यह चिंता छोड़ कर उसे पानी पिलाया, खुद भूखा रह कर अपने हिस्से का खाना खिलाया और उसे अपने घोड़े पर बैठा कर खुद काँटों भरी राह में पैदल चलने लगा.
RCM के मालिक द्वारा आम जनता को संत का मुखोटा लगा कर भावनात्मक ठगा गया
ReplyDeleteहमारे पास कई-कई सबूत हें जो यह साबित करते हें कि RCM में हर तरह से हर स्तर पर ठगी कर के पैसा बनाने का कार्य उपरी लेवल यानि टी. सी. जी. के द्वारा किया जा रहा था और बाकी सब तो उनके हाथों की कठपुतली थे. बात ये नहीं हें कि वो ठग रहे थे, भोले लोगो को ठगने का कार्य तो हर देश में सदियों से होता आया हें, बात यह हें कि वे अपने आप को अपने प्रवचनों व् किताबों आदि से एक निस्वार्थ संत के तौर पर स्थापित कर के भावनात्मक तरीके से लोगो के साथ इस ठगी को अंजाम दे रहे थे जिससे आम लोगो का अब असली साधु-संतो की भावनाओं पर से ही विश्वास उठ जायेगा, लोगो में परोपकार की भावना ही नहीं रहेगी जो की इस भारत देश की मुख्य पहचान हे.
एक पुरानी कहानी हें कि एक बार जंगल में एक मुसाफिर अपने कीमती सामान और घोड़े पर सफ़र कर रहा था. रास्ते में एक खून से लथपथ व्यक्ति सड़क पर पड़ा कराह रहा था,
यह देख वह भोला परोपकारी मुसाफिर दया वश अपने घोड़े से नीचे उतरा, खुद प्यासा रह जाएगा यह चिंता छोड़ कर उसे पानी पिलाया, खुद भूखा रह कर अपने हिस्से का खाना खिलाया और उसे अपने घोड़े पर बैठा कर खुद काँटों भरी राह में पैदल चलने लगा.
तभी अट्टहास करता हुआ वह ठग उसके घोड़े को एडी लगा कर उसके कीमती सामान सहित भाग गया, तब पीड़ित मुसाफिर ने उसे कहा अरे नीच तुझे और भी धन चाहिए तो मेरे घर आ कर ले जाना धन किसी के साथ स्वर्ग नहीं जाता लेकिन आइन्दा किसी और को इस तरह के बहरूपिया वेश से मत ठगना नहीं तो लोगो का हकीकत में दुर्घटना ग्रस्त हुए मरणासन्न व्यक्ति पर विश्वास नहीं रहेगा. वे उसपे दया नहीं दिखायेंगे, लोगो में परोपकार की भावना ही खत्म हो जायेगी.
ठीक ईसी तरह यह भेड़िया भेड़ की खाल ओढ़ कर दुनियाँ को ठग रहा था ताकि किसी को शक न हो और लोग कहे कि ये तो बेचारी भेड़ हें ये एसा कैसे कर सकती हें. बात-बात में ईश्वर को आगे लाने वाला स्वय इश्वर की आँखों में धुल झोंक रहा था. रंगे सियार का तो एक न एक दिन रंग उतरना ही था, लेकिन अफ़सोस हें कि उनके कई अंधभक्तो पर से अभी तक उसका चढ़ाया हुआ रंग नहीं उतरा हें?