मीटिंग प्रवेश शुल्क से ठगी :-
रिजोइनिंग किट से ठगी :-
"Come Once Stay Forever" के नारे को जोर शोर से प्रचार करने वाली कंपनी RCM आरसीएम ने खुद को, परिवारजनों और कुछ चापलूस लीडरों को ज्यादा फायदा दिलाने के लिए एक साजिश रची और लाखों सदस्यों को उन्हें मेहनत कर के ज्वाइन कराने वाले प्रपोजर, ग्रुप की जेनेरिक ट्री के एक निश्चित स्थान से अन्य जगह उन लीडरों, परिवारजनों की ट्री में स्थानांतरण कर दिया इस कारण से लाखों वे सदस्य जिनका थोडा-बहुत कमीशन बनता था वह भी बंद हो गया पर वे चुने हुए लीडर व् परिवारजन और अधिक धनवान हो गए. इस रि-जोइनिंग किट से कंपनी ने भी अपनी सोची समझी रणनीति से खूब चाँदी काटी और अपना ओवर स्टॉक, पुराना ख़राब हो चुका सामान, रिजेक्टेड सिडियें, रद्दी के भाव बिकने वाली किताबे, बेग आदि को जिनकी कीमत बाजार में 100/- रुपये भी नहीं थी को 500/- रुपयों में बेच दिया जिससे कंपनी और मुख्य कार्यकरता तो आर्थिक आजाद हो गए लेकिन वे लाखों लोग जो आर्थिक आजादी पाने की आस में आये थे वे ठगे से रह गए, उनकी 'B' लेग का बिजनस लाखों रुपयों से हजारों, फिर धीरे-धीरे सेकड़ो और आखिर में 0 पर आ गया, अपनी मेहनत को इस तरह लुटते देख उनकी कैसी हालत हो गयी?
लीडरों के अंतर्कलह से ठगी :-
कहने को तो RCM आरसीएम कंपनी ने इस बिजनस को आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ाने और एक बार मेहनत करने के बाद कई पीढ़ियों तक आय उस मेहनत से लगातार मिलती रहेगी कह कर प्रचारित किया, लेकिन असली हकीकत कुछ और ही थी. आर सी एम् बिजनस प्लान इस तरह गढ़ा गया कि हर सदस्य की क्रोस लेग होती थी और सेमिनारों के मंच पर आपस में गले मिल कर अति प्रेम का नाटक करने वाले लीडर जिनके कि अच्छा-खासा कमीशन हर माह बनता था वे बेचारे इस तरह के बिजनस प्लान की वजह से मजबूर हो कर बाहर फिल्ड में एक-दुसरे की लेग पर कुल्हाड़ी भी चला देते थे यानि कि क्रोस लेग में जुड़े अच्छे कार्य करने वाले को प्रलोभन दे कर अपनी लेग में जोड़ लेते, और यही छोटी सी गलती से वे टी सी जी के पहले से ही इस बात को ध्यान में रख कर बनायें शर्तो के जाल में फंस जाते, फिर शिकायतों का दौर शरु होता व् मामला टी सी जी तक जाता और जिस तरह दो बिल्लियाँ अपनी एक रोटी की लड़ाई के न्याय के लिए चालाक बन्दर के पास जाती हे तो क्या होता हे यह बात बच्चा-बच्चा जानता हे, जिस पक्ष का पलड़ा भारी होता वह बच जाता और हल्के पलड़े वाले की या दोनों की ही आईडी सर जी टर्मिनेट कर देते, अन्य लीडर लोग इस न्याय की वाह-वाह करते, खूब तालियाँ बजाते बिना यह जाने कि एक दिन किसी न किसी बहाने से आखिर उनका भी टिकट कट जायेगा, यही एक तरह से पहले से सोची समझी चाल, ठगी थी क्योंकि अब से हर माह उस टर्मिनेट हुई आईडी पर बनने वाला उतरोत्तर बढ़ता हुआ लाखों का कमीशन कंपनी के बेंक खातों में ही सर जी की पीढ़ियों तक के लिए कैद हो जायेगा और वह लीडर न घर का रहता न घाट का और ख़ून के आंसू रोता कि शायद सर जी का दिल पसीज जाए लेकिन उस जीव को क्या मालूम कि ये एहसान फरामोश अब इतने बड़े बन चुके कंगूरे की नीवं की ईट को इस तरह निकाल फेंकते हे जैसे दूध में से मक्खी. जाँच में इस तरह की करीब चार लाख आइडियें पाई गई हे जिन पर हर माह करोडो का कमीशन बनता था लेकिन उसका भुगतान उन सदस्यों, लीडरों को नहीं किया जाता था कंपनी के पास ही रहता था. आखिर उन लाखों भाइयों की हाय भगवान ने सुनी और उस घमंडी कंगूरे को टी.टा. की तरह जमींदोज कर दिया.
आपको यह बात अजीब सी लग सकती हे लेकिन सत्य यही हे कि RCM आरसीएम कंपनी समय-समय पर यह कह कर वेब साईट अप ग्रेड करती रहती कि इससे कार्य प्रणाली में सुधार होगा लेकिन परदे के पीछे का सच यह था कि इस बहाने लाखों डिस्ट्रीब्यूटर जिनका कि कंपनी अकाउंट में कमीशन 500/- रुपये से कम जमा हुआ होता था उसे 0 कर दिया जाता, यही नहीं जिनका 500/- से 5000/- प्रति माह कमीशन उनके बेंक खातों में ट्रांसफर हो रहा होता उनके पर्सनल डिटेल से बेंक खाते कि डिटेल ही हटा दी जाती थी ताकि न रहें बांस न बाजे बांसुरी. इस तरह के पीड़ितों को कई- कई माह तक तो यह मालूम ही नहीं चलता था क्योंकि हर आम सदस्य तो रोज इन्टरनेट पर अपना आर सी एम् खाता चेक करता नहीं था फिर फोन पर कस्टमर केयर का तरीका असह्योगनीय व् टाल-मटोल करने वाला होता था और यह फोन भी उन्हें बड़ी मुश्किल से ही लग पाता था और हर डिस्ट्रीब्यूटर तो भीलवाडा इस छोटी सी रकम के लिए आ नहीं सकता था और अंत में इनमे से कुछ विरले सक्रीय डिस्ट्रीब्यूटर ही अपना खोया धन वापस किसी तरह से जुगाड़ कर के पा सकते थे बाकियों का इस छोटी-छोटी रकम से बना कुल करोडो रूपया कंपनी के पास ही पड़ा रह जाता इस तरह कंपनी यहाँ पर भी ठगी करने से नहीं चुकती थी.
बिना नाम, अकाउंट मद की कटौती से ठगी :-
ज़माने भर में यह ढिंढोरा पीटा जाता कि RCM आरसीएम कंपनी में जोइनिंग लेने वाला हर सदस्य केवल सदस्य या डिस्ट्रीब्यूटर ही नहीं हे बल्कि वह कंपनी का पार्टनर, हिस्सेदार, मालिक भी हे. लेकिन हकीकत इस बात से कोसों दूर थी, असली मालिक रोज-रोज अपनी मन-मर्जी से नित-नये नियम और प्लान के तरीके बदलते रहते थे जिस कारण उस सदस्य ने जिस समय जोइनिंग ली थी उस समय के कंपनी के बनाये गए नियमों का आगे चल कर कोई वजूद ही नहीं रहता और इस आमूलचूल बदलाव के लिये उस सदस्य से जो कि अपने आप को कंपनी की कागची बातों के कारण कंपनी का मालिक समझता था उससे कभी कोई राय-मशविरा, सहमती नहीं लिया जाता.
इसी सिलसिले में कुछ वर्ष पहले कंपनी ने हर माह हर कमीशन अर्न करने वाले सदस्य के कमीशन में से बिना किसी विशेष नाम या मद की कटौती काटनी शरु कर दी जो कि सदस्यों की कमीशन राशी की गणना के हिसाब से अलग-अलग होती थी और प्राय 20/- से ले कर 300/- रुपये तक होती थी. यदि इस बेनामी राशी का औसत प्रति सदस्य 50/- रुपये भी यदि कम से कम माना जाय तो भी हर माह कुल करोडो रुपये कंपनी सदस्यों की आय में से झटक लेती, इस मद में एक हास्यापद बात भी होती की जिस बेचारे सदस्य के बेंक में ट्रांसफर होने के योग्य 500/- रुपयों की राशी का कमीशन नहीं भी बनता तो भी यह राशी कंपनी काट लेती इस प्रकार कंपनी के असली मालिक बड़े आराम से जोर का झटका धीरे से के तर्ज पर ठगी करते.
RCM आरसीएम के द्वारा बीमा उत्पादों के खयाली प्रचार से ठगी :-
RCM कस्टमर केयर नंबर के द्वारा ठगी :-
RCM द्वारा हमारे परिवार व्यवस्था, सामाजिक ताने-बाने में सेंध कर के ठगी :-
RCM के मालिक द्वारा आम जनता को संत का मुखोटा लगा कर भावनात्मक ठगा गया :-
RCM द्वारा गेर कानूनी कार्यों से सरकार व आम नागरिकों के साथ ठगी :-
आपकी यह बात 101% सही हे. ज्यादा नहीं सिर्फ तीन साल पीछे जा कर इनके द्वारा रोज-रोज की जा रही नित-नयी हरकतों पर गहराई से यदि नजर डाली जाये तो यह शक और भी पुख्ता होता हे. इन तीन सालों में इन्होने अपना पूरा ध्यान इस बात पर लगा दिया कि कैसे अति कम समय में अरबों-खरबों रुपये इक्कठे किये जाये, इसके लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए गए, सभी उत्पादों की क्वालिटी जो कि पहले से ही घटिया थी उससे ज्यादा लाभ निकालने के लिये और निम्नतर स्तर का किया गया इन्हें सामान नहीं बिकने का डर तो था नहीं क्यों कि लोटरी का लालच जो साथ जुड़ा था, और दो-दो जोइनिंग लाना हर लीडर की मज़बूरी थी, भलेही उन्हें अपनी जेब से 500/- -500/- रुपये देने पड़ते थे असली जोइनिंग लाने वाले को और उपभोक्ता कानून के नियम से इन्हें भय था नहीं क्योकि शिकायत करने वाले को इन्होने उसकी आईडी ही टर्मिनेट कराने का डर जो दिखा रखा था, अब "बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधने जाएगा" वही जो मौत को गले लगाना चाहता हो, अरे भई! अब यहाँ अखाड़े में पहलवान बन कर बड़ी-बड़ी ताल ठोकने वाले हम भी नहीं गये थे घंटी बांधने, उस बिल्ली मौसी की गुर्राहट भी उस समय हमें शेर की दहाड़ जैसी लगती थी.
आश्चर्य की बात तो यह थी की ये पूरे देश में धड़ल्ले से गेर क़ानूनी उत्पाद और कार्य भी सभी राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार की नाक के ठीक नीचे बेच रहा, कर रहा था, कैसे बेच रहे थे, कर रहे थे इसकी SOG से नहीं CID से जाँच होनी चाहिए क्योकि बिना भ्रष्टाचार के ये इस देश में संभव ही नहीं हे. भ्रष्टाचार के विरुद्ध पूरे देश में अलख जगाने वाले श्री अन्ना जी से समर्थन मांगने जंतर-मंतर पर जाने से पहले ये जाने वाले चुल्लू भर पानी में डूब कर मर क्यों नहीं गये? क्योकि एक न एक दिन इनके इस कार्य के कारण लोग, राजनेता उस महापुरुष श्री अन्ना जी पर भी इन भ्रष्टाचारियों को दिए गये समर्थन रूपी इस दाग पर अंगुली उठा सकते हे.
* बिना ISI मार्के का बिजली का किसी भी तरह का सामान बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (जैसे की पंखे, पावर सेवर, आर ओ, इनवर्टर, बेटरी, मिक्सी आदि)
* पैक्ड या डिब्बाबंद कोई भी खाद्य पदार्थ सामान बिना एगमार्क और FPO लाइसेंस के बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (इसमें इनके सामानों की इतनी लम्बी लिस्ट हे की कई पेज भर जायेंगे)
* कास्मेटिक्स सामान जिनमे हानिकारक केमिकल की मात्रा होती हे वे बिना किसी सरकार द्वारा प्रमाणित प्रयोगशाला से प्रमाण पत्र लिये बिना बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (इसमें हजारो तरह के उत्पाद आते हे.)
* बिना लाइसेंस के कीटनाशक और उर्वरक खाद उत्पाद बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (कंपनी, PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का एसा सामान वार्षिक बेच रहे थे.)
* बिना लाइसेंस लिये मेडिसिन उत्पाद बनाना, भंडारण करना, बेचना गेर क़ानूनी हे. (कंपनी, PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का एसा सामान वार्षिक बेच रहे थे.)
* बिना TIN नंबर की PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का सामान वार्षिक बेच रहे थे को सामान सप्लाई करना और उनके द्वारा भण्डारण करना व् वापस आगे बेचना गेर क़ानूनी हे. (वापस विक्रय पर देय टेक्स जमा नहीं कराना कालाधन बनाने जैसा हे)
* बिना फ़ूड लाइसेंस वाली PUC और DISTRIBUTOR जो की लाखो का सामान वार्षिक बेच रहे थे को सामान सप्लाई करना और उनके द्वारा भण्डारण करना व् वापस आगे बेचना गेर क़ानूनी हे.
* बिना कंपनी की रसीद दिए 150/- में बेंक में खाता खोलने के करोडो फॉर्म बेचना और वो रुपये उपभोक्ता के बेंक एकाउंट बेलेंस में नहीं देना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)
* हर माह कंपनी द्वारा रखी गयी मीटिंगों में लाखों की तादात में टिकट बेच कर प्राप्त कलेक्शन पर सर्विस टेक्स नहीं चुकाना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)
* PUC या DISTRIBUTOR से प्राप्त एडवांस या सिक्योरिटी राशि जिसे लम्बे समय तक कंपनी अपने पास रखती हे और उस राशी पर खुद ब्याज प्राप्त करती हे तो उस पर प्रचलित कम से कम दर पर भी ब्याज नहीं देना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)
* आम लोगो को विदेशी सामान का बहिष्कार करने का कह कर खुद विदेशी सामान यहाँ बेचना गेर कानूनी हे.
* बिना अपनी कंपनी का IRDA से रजिस्ट्रेशन कराये अपनी कंपनी के दस्तावेजो से बीमा प्रस्ताव नागरिकों से करना व् बेचना गेर कानूनी हे.
* किसी भी सामान्य या कोरपोरेट बीमा एजेंट या IRDA से प्रमाणित बीमा कंपनी के द्वारा बीमा उत्पाद के प्रस्ताव को किसी भी तरह का लालच दे कर, जैसे लोटरी-कमीशन आदि का बेचना गेर कानूनी हे.
* कम से कम कोई निश्चित राशि का सामान प्रति माह खरीदने और उसमे पोइन्तो पर कमीशन व् लोटरी देने की शर्त, लालच के साथ बिना IRDA से लाइसेंस ले कर खुद अपने स्तर पर दुर्घटना बीमा करना या करवाना गेर कानूनी हे.
* किसी कोर्पोरेट IRDA से प्रमाणित बीमा कंपनी एजेंट से अपने सदस्यों के लिए ग्रुप बीमा ले कर सदस्यों को हर माह निश्चित कम से कम राशि का सामान खरीदने पर ही उसका लाभ देना लालच देने जैसा ही हे जो कि गैर क़ानूनी हे.
* सदस्य को विक्रय किये जा रहे सामान के बिल में कितनी राशी दुर्घटना बीमा के मद में काटी जा रही हे स्पष्ट नहीं बताना गैर क़ानूनी हे.
* 5 लाख वार्षिक से कम सामान बेचने वाली PUC या DISTRIBUTOR द्वारा VAT कमपोंस्टेशन प्रमाण पत्र SALE TAX डिपार्टमेंट से लिए बिना सामान बेचना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)
* Distrbutaro द्वारा अपने स्वय के घरेलू उपयोग के अलावा कोई भी सामान बिना स्थानीय पंचायत, नगरपालिका, निगम में पंजीयन कराये एव आवश्यक प्रमाणपत्र लिए बेचने का कार्य करना गेर क़ानूनी हे. (कालाधन बनाने जैसा हे)
RCM द्वारा देशी-विदेशी सामान के मुद्दे पर आम जन को भरमा कर ठगी :-
इस देशी-विदेशी के मुद्दे पर हमें पहले कुछ सामान्य जानकारी, बाते समझनी होगी.
* आज व्यापारिक और ज्ञान के तौर पर दुनिया के सभी देश एक प्लेटफोर्म पर आ गए हे.
* आप दुसरे देशो को सिर्फ निर्यात ही करेंगे उनसे वापस कुछ भी आयात नहीं करेंगे यह अर्थशास्त्र के प्राकतिक नियमो, धन के प्रवाह के विरुद्ध हे, और दुनियाँ में एसा कोई एक देश भी नहीं होगा जो आपसे इस तरह के एकतरफा व्यापार की उम्मीद रखेगा कि आप तो उसे अपने यहाँ का सामान, सर्विस बेचते रहे उस बेचारे देश से वापस कुछ भी नहीं ख़रीदे.
* ये जिन कंपनियों के नाम गिनाते नहीं थकते थे वे असल में हमारे देश में फेक्ट्री लगा कर हमारे कानून के अनुसार चलती हे न कि उनके अपने देश के कानून के अनुसार और उन्हें हमारे नियम-अधिनियमों के अनुसार जरुरी सभी पंजीयन, लाइसेंस लेने होते हे, यहाँ रोजगार देना होता हे व् अधिकांश उनकी आय का हिस्सा इस देश में ही नियोग करना होता हे अन्यथा उन पर कार्यवाही होती हे और दंड दिया जाता हे.
* किसी देश की विशेष भोगोलिक स्थति, प्राक्रतिक संसाधनों कि उपलब्धता, ज्ञान-अविष्कार आदि का वितरण उस देश में ही सिमित नहीं रह कर यदि सम्पूर्ण दुनिया में होता हे तो इससे दुनिया के हर नागरिक का भला ही होता हे उसका जीवन स्तर उंचा उठता हे और उसे प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पाद उच्च क्वालिटी के वाजिब दर पर मिलते हे. अगर आपको जमाने के साथ चलना हे तो जो अब आवश्यक हो गयी चीज जिसे आप अभी वर्तमान में बना नहीं सकते या उसकी टेक्नोलोजी कोपीराइट संपदा के तौर पर किसी विदेश में रजिस्टर्ड हे तो आपको उसे विदेश से आयात करना ही होगा नहीं तो आप तेजी से विकसित होती दुनियाँ में पिछड़ जायेंगे.
इस सन्दर्भ में एक छोटा सा उदाहरण यहाँ देना चाहूँगा कि श्री राजीव गाँधी अति दूरदर्शी प्रधानमंत्री थे और वे विदेश से इस देश में कम्पूटर क्रांति लाना चाहते थे. उनके इस प्रस्ताव का कई राजनेतिक दलों, बेंक कर्मचारियों ने घोर विरोध किया, इससे करोड़ों लोग बेरोजगार हो जायेंगे, विदेशियों का यहाँ राज हो जाएगा और न जाने क्या-क्या बाते कही गयी. लेकिन वे धुन के पक्के थे अंत इसे यहाँ लाये, और आज कम्पुटर की क्या उपयोगिता हमारे जीवन में हे बच्चा-बच्चा जानता हे, और यही बात अब मोबाईल के सन्दर्भ में भी कही जा सकती हे.
* अब जो लोग, कंपनियाँ इस प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाती, उत्पादों को स्टेंडर्ड के अनुसार बना नहीं पाती, उपभोक्ताओं को स्तरीय सेवाए दे नहीं पाती वे अपने घटिया उत्पादों को भी महंगे दामो में बेचने के लिए संकीर्ण मानसिकता वाले जन का उपयोग करती हे, उनकी भावनाओ को देश प्रेम का हवाला दे कर गुमराह करती हे, अपने लाभ के लिए षड्यंत्र कर के आन्दोलन करवाती हे, खुद पीछे रह कर लोगो को मरवाती हे, धर्म का सहारा अपने लाभ के लिए लेती हे. खुद गुड़ खाती हे और लोगो को गुलगुलों से परहेज करने का कहती हे, खुद अपने घर में ब्रांडेड सामान, विदेशी सामान लाती हे लोगो को अपना घटिया सामान MLM के जाल में फाँस कर बेचती, ठगती हे.
* दोस्तों, MLM सिस्टम गलत नहीं हे लेकिन इन कुछ भारतीय कंपनियों ने अपने खुद को और खुद के परिवार को असीम लाभ हो जाए इसके लिए प्लान को गलत तरीके से बना रखा हे, प्लान पर किसी नियम-अधिनियम का कानूनी कंट्रोल नहीं हे, और खुद अति लाभ पाने की चाह में आम जन को बेतुकी शर्तो में बांध कर हर तरह से ठग, लुट रही हे. बात-बात में अमेरिका में 70% MLM सिस्टम से सामानों का विक्रय होता हे का उदाहरण देते नहीं थकने वाली RCM अपने एक प्रतिशत उत्पाद को भी वहां के उपभोक्ताओं के लिए तय किये गए स्टेंडर्ड, मानदंडो के अनुरूप पास करा के बताये तो जानू.
RCM द्वारा "लोयलटी बोनस" प्लान में "अंधा रेवड़ी बाँट रहा हे" जैसी बात फेला कर उत्पादों की जबरदस्त बिक्री और अग्रिम राशि प्राप्त कर के ठगी की गयी :-
यह बात इनके जाँच में मिली कंपनी की बेलेंस शीट से साबित होती हे कि सब तरह के कंपनी के खर्चो का जोड़ करीब 750 करोड़ रुपये था और कंपनी कि आय करीब 1400 करोड़ वार्षिक थी. यह बात आप किसी भी सी. ऐ. क्या साधारण एकाउन्तेन्त को बता के भी पूछ सकते हे की कंपनी वास्तव में किनका पैसा बाँट रही थी.
यह तो अभी के आंकड़े हे याद करे, सोचे कि उस वर्ष कंपनी ने कितना धन बटोरा होगा जब "लोयलटी बोनस" के लूटमार प्लान से ये ज्यादा से ज्यादा लोगो को ठग सके इसके लिए इन्होने उत्पाद उपलब्ध नहीं होने पर एडवांस बुकिंग का फंडा निकाला था, लोग टूट पड़े थे, लाइन लगा कर एसे-ऐसे सामान एडवांस बुक करा रहे थे कि कई दूसरी कंपनी वाले चक्कर में पड़ गए कि यह क्या हो रहा हे, कंही कोई अंधा रेवड़ी बाँट रहा हे क्या?.
ऐसे कुछ लोकल सामानों पर गोर फरमाते हे :-
१. 3500 की लागत का RO 13500 में बुक किया गया, व् बेचा गया. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बाद में इनमे से 90% 6 माह भी नहीं चल पाए)
२. 100 की लागत का पावर सेवर 1000 में बुक किया गया व् बेचा गया. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, पावर सेव करने का इनका दावा एक भी प्रयोगशाला में प्रमाणित नहीं हो पाया.)
३. 600 की लागत की सूरत की साड़ी को प्रसिद्ध अभिनेत्री के नाम को भुना कर 2500 में बुक किया गया व् बेचा गया. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, जिस साड़ी को एश्वर्या ने कभी नहीं पहना था.)
४. 5000 की लागत की घटिया बेटरी को 10000 में बेचा गया, बुक किया गया. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, EXIDE के समकक्ष कही जाने वाली बेटरी सिर्फ 6 माह भी नहीं चल पाई, कइयो का पेट फूल गया, कई बम की तरह फट पड़ी)
५. 2500 की लागत का इनवर्टर 6500 में बेचा व् बुक किया गया. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचे गए. वीनस ब्रांड से भी टेक्नोलोजी में आगे कहे गाने वाले की सांसे दो माह में ही उखड गयी.)
६. 200 की लागत की खाद बेचारे किसानो को जबरदस्ती 2000 (काफी दिनों तक 3000 में) में बेचीं गयी (600 Gram only) व् बुक की गई. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचीं गयी)
७. 400 की लागत की कीटनाशक दवा 4000 में बुक की गयी व् बेचीं गयी. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचीं गयी)
८. 1200 की लोकल दिल्ली मेड मिक्स्सी 3500 में बेचीं गयी, बुक की गयी. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचीं गयी)
९. 50 की लागत की घड़ी 500 में और 100 वाली 900 में बेचीं गयी और बुक की गयी. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचीं गयी)
१०. 150-200 की लागत के आगरा-दिल्ली के जूते 750-999 में बेचे गए व् बुक किये गए. (पूरे देश में लाखों की तादात में बुकिंगे की गयी, बेचे गए)
११. 35-40 थोक मंडी भाव की "आखे मूंग" (दाल नहीं) 100 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचे गए. (पूरे देश में हजारो क्विंटल सप्लाई किया गया) अपने आप को गरीबों का मसीहा बताने वाला गरीबों की इस प्रिय चीज में भी ठगी करने से नहीं चुका. फिर भी लीडरों को "दाल में काला हे" नहीं दिखाई दे रहा हे, कमीशन के लोभ ने इनको अंधा, बहरा, गूंगा, ही नहीं लूला, लंगडा भी कर दिया हे.
RCM कंपनी शुरू से ही अपने सक्रीय सदस्यों की मनघडंत, फर्जी विशाल संख्या बता कर नए लोगो की जोइनिंगे ले कर ठग रही थी :-
मनुष्य की इसी स्वाभाविक कमजोरी का श्री 420 टी सी जी ने भरपूर फायदा कंपनी के शुरूआती दिनों से ले कर बंद होने के कगार पर पहुँचने तक सक्रीय सदस्यों की गलत संख्या बता कर यानि की झूट बोल-बोल कर उठाया. लीडर लोग अपनी हर मीटिंग में पहले भी इस झुटी संख्या को जोर दे दे कर हाई लाईट करते थे और अब भी मीडिया, सरकार, न्यायपालिका, आम जनता को बेवकूफ बनाने से बाज नहीं आ रहे हे, इनके द्वारा कही जा रही एक करोड़ पचास लाख RCM सक्रीय सदस्यों की संख्या पूरी तरह से बकवास हे, झूट का पुलिंदा हे, हवाई किला हे. हकीकत में इस संख्या का 5% भी सक्रीय सदस्य नहीं हे और १% सदस्यों को भी आय नहीं हो रही हे 99% सदस्य जोइनिंग लेने के बाद आखिर में अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हे.
एक छोटा सा उदाहरण पेश हे :-
दिल्ली के चोर बाजार या हाट बाजार में चतुर ठग व्यापारी 200 का माल 100 में चिल्ला-चिल्ला कर बेच रहा होता हे और उसके ठेले के चारों तरफ 5-10 जनों की भीड़ इक्कठा हुई हुवी होती हे और उनमे से कई जने 100/- दे कर वह माल खरीद रहे होते हे, ऐसे में भीड़ देख कर और उनको खरीददारी करते देख कर और कंही सारा माल समाप्त नहीं हो जाए बाजार में आये इस गोरखधंधे से अनजान कुछ लोग भी 100 दे कर सामान खरीद कर खुद को होशियार ग्राहक समझते हुए अपने घर को चले जाते हे.
अब देखने में तो यह बड़ी सामान्य सी बाजारों में होने वाली रोजमर्रा की बात हे लेकिन इस तरह की दुकानदारी में वास्तविकता यह थी कि वे पहले से खरीददारी कर रहे 5-10 जनों की भीड़ फर्जी थी, वे उस ठग गिरोह के ही सदस्य थे और उनकी देखा-देखी अन्य लोगो ने 50/- की वास्तविक कीमत के सामान के 100/- दे दिए इस तरह उन्हें ठगों के सरदार और गिरोह के द्वारा बड़ी ही योजनाबद्ध तरीके से ठगा गया.
ठीक इसी तरह RCM में भी कंपनी और लीडरों (सरदार और गिरोह) के द्वारा सदस्यों की फर्जी संख्या व मासिक बिक्री के फर्जी आकडे बता कर शुरू से ही ठगी का कार्य बदस्तूर चालु था.
शुरू से ऐसे कि सदस्य संख्या आई डी 1 नंबर से शरु करने की बजाय टी सी जी ने जानबूझ कर चालाकी से 10001 से शरु की और शरुआती मीटिंगों में लोगो को यह बताया गया कि कंपनी में दस हजार से अधिक लोग जोइनिंग ले चुके हे जबकि वास्तविकता यह थी कि 31 अगस्त 2000 को एक साथ कुछ लोगो की जोइनिंग की गयी जिनमे से ज्यादातर टी सी जी के परिवार के सदस्य और मित्र आदि ही थे जिनमे से प्रमुख श्री मुकेश कोठारी का डिस्ट्रीब्यूटर नंबर 10009 था जो की वास्तव में 9 नंबर ही था, दस हजार की संख्या तो हाथी के दिखावे के लम्बे दांतों की तरहा ही थी.
यहाँ में एक बात और बताना चाहूँगा की टी सी जी शरुआत से ही कितने घाघ व्यक्ति थे, वो यह कि उन्होंने अपने कम्पूटर सिस्टम में छेड़खानी कर के करीब एक माह के समय में जो तारीख वाइज पहले फार्म जमा हुए थे उनको "पहले आओ पहले पाओ" के सिद्धांत की जगह अपनी मनमर्जी से कई दिनों तक एक ही तारीख कम्पूटर में सेट कर के खुद को, परिवार को, ख़ास मित्रो को बाद में अधिक से अधिक फायदा हो उस हिसाब से ट्री में ऊपर-नीचे कर के जमाया. यह बात इससे भी पुख्ता होती हे कि उस समय ऑन लाइन इंटरनेट सिस्टम नहीं था और एक ही 286 टाइप के बहुत ही धीमी गति के कम्पूटर पर कैसे एक ही दिन 31 अगस्त 2000 की तारीख में करीब 400 सदस्यों के फार्म की पूरी की पूरी डाटा बेस टाइप कर के लोड की गयी? जो की असंभव हे.
बाद में भी टी सी जी ने सेकड़ो बार भगवान् के द्वारा बनाए गए प्राकतिक समय चक्र की घड़ी की सुइयों को अपने और अपने परिवार के फायदे के लिए उलटा घुमाया था, दिन को रात और रात को दिन, नए माह की 1, 2, 3 तारीख को पुराने माह की 30 तारीख पर ही रोके रखना तो जेसे उनके बायें हाथ का खेल था, आखिर वे कलयुग के अवतार थे, इस स्रश्ठी की रचना करने वाले भगवान् से भी बड़े जो थे, लीडरो के साथ-साथ समय को भी उन्होंने अपने हाथो की कठपुतली बना रखा था, समय अपने नहीं उनके हिसाब से चलता था.
अब इनके द्वारा कंपनी के बंद होने तक और अभी तक चिल्ला-चिल्ला कर कही जा रही करीब एक करोड़ पचास लाख RCM सक्रीय सदस्यों की संख्या और मासिक 1000 करोड़ रुपयों से भी अधिक के कुल टर्न ओवर का सच जानते हे. इसके लिए हमें नीचे दी गयी कंपनी ही की कुछ बातो, आकड़ो पर गहराई से गौर करना होगा.
* जैसा कि आप सभी जानते हे कंपनी अपने अंतिम तौर पर चेंज किये गये "लोयलटी बोनस" ड्रा प्लान में पुरे देश में विक्रय हुए सामान के कुल मासिक बिजनस वोल्यूम BV का 1% फंड प्रथम पुरस्कार 11000/- रुपये के ड्रा के लिए रखती थी.
* कम्पनी के तत्कालीन बिजनस प्लान अनुसार हर सदस्य (डिस्ट्रीब्यूटर) को हर माह कम से कम 1000/- रुपये की सेलिंग प्राइज का सामान खरीदना अनिवार्य था तभी वह सक्रीय डिस्ट्रीब्यूटर कहलाता और सभी तरह के कंपनी से मिलने वाले लाभों का हकदार होता.
* 1000/- रुपये की सेलिंग प्राइज के सामान की औसत BV 600/- रुपये के करीब होती थी यानि कि सामान की मूल कीमत का 60% .
* कंपनी बंद होने के एक माह पूर्व माह अक्टुबर 2011 के "लोयलटी बोनस" ड्रा जो की माह नवम्बर 2011 के प्रथम सप्ताह में निकाला गया, में प्रथम पुरस्कार 11000/- रुपये प्राप्त करने वाले सदस्यों की पूरे देश भर की कुल संख्या केवल 338 थी. (हमारे पास प्रथम से ले कर अंतिम तक की सारी लिस्टे पड़ी हे)
* अन्तह कंपनी का कुल मासिक बिजनस वोल्यूम BV का 1% की राशी 338 X 11000 = 37,18,000/- रुपये (अक्षरे सेतिस लाख अठारह हजार केवल) थी.
* अन्तह जब कंपनी का कुल मासिक बिजनस वोल्यूम BV की 1% राशी का योग 37,18,000/- रुपये होता हे तो कंपनी की कुल मासिक BV 100% राशी का योग होगा 37,18,000 X 100 = 37,18,00,000/- रुपये (अक्षरे सेतिस करोड़ अठारह लाख केवल)
* अब जब एक सदस्य की मासिक खरीद पर औसत BV 600/- रुपये करीब होती हे तो कंपनी के देश भर में फैले कुल सक्रीय सदस्यों (डिस्ट्रीब्यूटर) की संख्या हुई 37,18,00,000 / 600 = 6,19,667 **( छह लाख उन्नीस हजार छह सौ सडसठ )
* कुल मासिक विक्रय हुए सामान की 60% BV का योग जब 37,18,00,000 रुपये होता हे तो मासिक विक्रय हुए कुल सामान की मूल कीमत यानि की कंपनी का मासिक टर्न ओवर होगा 371800000 / 60 X 100 = 61,96,66,667 (अक्षरे इकसठ करोड़ छियानवे लाख छासठ हजार छह सौ सडसठ)
उपरोक्त गणित कोई बहुत कठिन गणित नहीं हे जो किसी 'सी ऐ' की जरुरत पड़े, किसी भी स्कूल की पांचवी क्लास में पढ़ रहा बच्चा भी कंपनी के स्वंय के दिए आंकड़ो के आधार पर दूध का दूध, पानी का पानी कर देगा.
दोस्तों, इस तरह कंपनी और लीडरो के द्वारा बार-बार कही जा रही RCM में एक करोड़ पचास लाख RCM सक्रीय सदस्यों की संख्या और कंपनी का मासिक 1000 करोड़ रुपयों से भी अधिक के कुल टर्न ओवर का यदि कंपनी के खुद के द्वारा ऑफिशियली जारी आंकड़ो से तुलना की जाए तो पूरी तरह से फर्जी हे, मनघडंत हे, झूट का पुलिंदा हे, केवल हवाई किला हे.
हकीकत में इस संख्या का 5% (7,50,000 सात लाख पचास हजार) भी सक्रीय सदस्य नहीं हे और इनमे से केवल 1% सदस्यों को भी आय नहीं हो रही थी जो की "ऊंट के मुह में जीरे के सामान हे" 99% सदस्य हर माह कंपनी के द्वारा ठगे जा रहे थे. और बताया जा रहा कुल मासिक टर्न ओवर का हकीकत में करीब 6% ही मासिक टर्न ओवर हे. अंत कंपनी की मीटिंगों में और अब सरकार को दिए गए ज्ञापनो में जो संख्या व टर्न ओवर बताया गया हे वह आटे में नमक जितना झूट नहीं पूरा का पूरा ही नमक हे यानि की सफ़ेद झूट हे.
** 6,19,667 ( छह लाख उन्नीस हजार छह सौ सडसठ ) पूरे देश में RCM के कुल सक्रीय डिस्ट्रीब्यूटर की यह संख्या तब और भी कम हो जाती हे (i) यदि हर लीडर, पिन अचीवर द्वारा हर माह खरीदा जाना जरुरी 750-1500 BV का सामान को भी ध्यान में रख कर गणना की जाए. (ii) लोयलटी बोनस प्लान के अलावा भी कंपनी कोई विशेष प्रोडक्ट की ज्यादा खरीद पर सेल्स प्रमोशन स्कीम ड्रा भी चलाती थी जिसके झांसे में आ कर कई डिस्ट्रीब्यूटर अकेले ही उस माह हजारों-लाखों BV का वह सामान विशेष खरीद लेते थे. जेसे माह अक्टुबर 2011 में मर्दानगी ताकत बढाने की गोलियों के 200 पेकेट खरीदने पर विशेष प्रोत्साहन ड्रा में शामिल करना. (सीधे तौर पर बिना सेल्स टेक्स नंबर लिए डिस्ट्रीब्यूटर (फर्जी केवल नाम के एजेंट) द्वारा इस तरह से सामानों का विक्रय करना गेर कानूनी हे क्योकि डिस्ट्रीब्यूटर तो वापस कोई बिल, इन्वोइस नहीं बना सकता था, लेकिन इस तरह का कार्य अपराध हे यह बात इतना बड़ा व्यापारी टी सी जी क्या नहीं जानता था? जानते बुझते उन्होंने लाखों लोगो को गेर कानूनी कार्यों में धकेला)
RCM "ठग ब्रदर्स एण्ड सन्स कम्पनी" के द्वारा MLM इतिहास के पहले नए आविष्कार से ठगी :-
जी हाँ दोस्तों, आज न्यायपालिका (हाईकोर्ट) एवं कार्यपालिका (विधायक, विधानसभा, सांसद, संसद) और इस देश की जनता जनार्दन व् मीडिया के सामने अपने आप को बेकसूर बताते हुए घड़ियाली आंसुओ की रो-रो कर नदियाँ बहाने वाले RCM के करता-धरता और लीडर यह कहते नहीं थकते कि वो तो सामान की उपभोक्ताओं को उनके स्वयं* के व् परिवार* के उपभोग के लिए डायरेक्ट सेलिंग कर रहे थे यानि कि एक हाथ से पैसा ले कर दुसरे हाथ से तुरंत सामान दे रहे थे या दिये जाने वाले सामान की एडवांस बुकिंग कर रहे थे तो इसमें चिट-फंड, मनी रोटेशन केसे हे?
* पुरुषो की मर्दानगी ताकत बढाने और स्त्रियों की कामेक्छा बढाने की गोलियों के तीन माह में 200 पेकेट खरीदने पर विशेष पुरस्कार देने की घोषणा दुनिया के सबसे बड़े लोभी मर्द और उसकी लोभेक्छा के काम में चूर कंपनी ने की थी, साथियों एक पेकेट एक व्यक्ति या स्त्री के लिए हर माह होता हे तो 200 पेकेट जिसका की विक्रय मूल्य करीब 60000.00 रुपये होता हे क्या कोई सदस्य अपने स्वयं और परिवार के लिए लेगा? कदापि नहीं, तो फिर क्या इतना सामान उसके द्वारा बिना किसी तरह का मेडिकल लाइसेंस, TIN नंबर लिए बेचना कानून सम्मत हे? नहीं, नहीं, नहीं लेकिन इस तरह का गोरखधंधा इस कंपनी में शरु से ही चल रहा था, करोडो क्या अरबों रुपयों का सरकारी टेक्स की चपत इस तरह से इस कंपनी ने सरकार को अपने स्वार्थ के लिए लगाईं और अपने इन सारे गेर कानूनी कारनामों को ये बेशर्म अभी भी सही ठहराने पर तुले हे, भोली आम जनता को गुमराह कर रहे हे, सरकार के विरोध में भड़का रहे हे.
खेर साथियों हम वापस इस पोस्ट की मूल बात पर आते हे. हर चालाक से चालाक ठग और चतुर से चतुर चोर भी कुछ न कुछ उतावलेपन में या ठगी के प्लान की बिसात बिछाते समय कहीं न कहीं कोई गलती कर बैठता हे जो उसे सीखचों के पीछे ले जाने के लिए काफी होती हे, ऐसी ही एक बहुत बड़ी गलती "ठग ब्रदर्स एण्ड सन्स कम्पनी" के करता-धर्ताओ ने कर दी थी. हालांकि इनका पूरा का पूरा "लोयलटी बोनस" प्लान सदस्यों से डायरेक्ट या इनडायरेक्ट इन्वेस्टमेंट करा के चिट-फंड, मनी रोटेशन ही था फिर भी इसमे सामान तो दिया जा रहा था भले ही उसकी बाजार में कीमत रुपये में पच्चीस पैसे ही हो, लेकिन आप उस परदे के पीछे अन्दर ही अन्दर खेले जा रहे प्लान को क्या कहेंगे जिसमे कि सदस्य से सीधे पैसा ले कर, जमा कर के कंपनी स्तर पर बिना किसी तरह की कीमत का फिजिकली सामान उस पैसा देने वाले, जमा कराने वाले सदस्य को दिये या देने का वादा किये उसके RCM में बने "लोयलटी बोनस" प्लान एकाउंट में आई डीयें डाल दी गयी?
आगे जारी ................देखते रहिये..............
* (आगे जारी हे...... देखते रहिये)
Jab Tak Murkh Maujud Hai Tagon Ka Dhanda Manda Nahi Hoga.Isme Thagne Wale Ka Nahi Apne Ko Thage Jane Ka mauka Dene Wale Ka Dosh Hai.Ab Bhi sapne Dekhna Band Karke Loyalty ke Paymemt Ke Liya Leader Aur Co. Par Police Karyawahi suru Karo
ReplyDeleteWah badhiya post
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट है
ReplyDeleteNice
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